छठ पूजा के चौथे दिन को "सूर्य अर्घ्य" या "सप्तमी" कहा जाता है, जब भक्त सूर्योदय के समय नदी, तालाब, या किसी जलाशय के किनारे एकत्रित होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
चौथे दिन की प्रक्रिया:
1. प्रातःकालीन तैयारियाँ:
चौथे दिन की सुबह, व्रति सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं। महिलाएँ विशेष रूप से इस दिन के लिए सज-धज कर तैयार होती हैं, और एक थाली में फल, पकवान और फूलों से सजा कर अर्घ्य देने के लिए जाते हैं।
2. सूर्य देव को अर्घ्य देना:
व्रति, जलाशय या नदी के किनारे खड़े होकर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान व्रति उधारी से बचने की कोशिश करते हैं और अपने सभी पापों को धोने के लिए सूर्य के सामने खड़े होकर विशेष मंत्रों का जाप करते हैं।
इस दौरान आमतौर पर **"ॐ सूर्यमणमः"** या **"ॐ आदित्याय च सोमाय"** जैसे मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
3. उपवास का समापन:
चौथे दिन का अर्घ्य देने के बाद व्रति उपवास का समापन करते हैं। व्रति न केवल शरीर से बल्कि मन से भी शुद्धि की प्रक्रिया पूरी करते हैं। इसके बाद वे पारंपरिक भोजन का सेवन करते हैं, जिसमें खासतौर पर ठेठरी, दाल-चिउड़े, गुड़, खीर, सत्तू, और आलू जैसे खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं।
4. सामूहिक रूप से पूजा:
इस दिन पूजा का आयोजन सामूहिक रूप से किया जाता है, जहाँ परिवार, पड़ोसी और मित्र एक साथ आकर सूर्य देवता को धन्यवाद अर्पित करते हैं। विशेष रूप से, परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे को आशीर्वाद देते हैं और इस दिन को खुशी-खुशी मनाते हैं।
सूर्य अर्घ्य का महत्व:
1. स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति:
सूर्य देवता के प्रति अर्घ्य अर्पित करने से जीवन में खुशहाली, स्वास्थ्य, और समृद्धि आती है। यह माना जाता है कि सूर्य देवता मानवता के पालनकर्ता हैं और उनकी उपासना से शारीरिक और मानसिक रूप से बल मिलता है।
2. पापों का नाश:
छठ पूजा का यह दिन व्रतधारियों के पापों का नाश करने वाला माना जाता है। अर्घ्य देने से आत्मा की शुद्धि होती है और व्यक्ति को न केवल इस जीवन में बल्कि आगामी जीवन में भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
3. प्राकृतिक संतुलन:
यह पूजा मानव को प्रकृति से जुड़ने का एक अवसर भी प्रदान करती है। सूर्य, जल, वायु, और पृथ्वी के साथ संतुलन बनाए रखने की यह प्रक्रिया आत्मिक शांति का कारण बनती है।
छठ पूजा के चौथे दिन का अरघ्य विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह व्रति के पूरे उपवास और तपस्या का समापन होता है। इस दिन भक्त सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित कर उनके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और साथ ही अपने जीवन को सुधारने की दिशा में एक कदम और बढ़ाते हैं। यह पूजा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।
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