संध्या अर्घ्य की विधि:
1. स्नान और पवित्रता:
- व्रति और श्रद्धालु इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर पवित्र हो जाते हैं।
- शरीर को शुद्ध करने के बाद पूजा स्थल की सफाई की जाती है।
2. पूजा स्थल तैयार करना:
- पूजा स्थल पर एक चौकी या वेदी बनाई जाती है, जिस पर सूर्यदेव की तस्वीर या मूर्ति रखी जाती है।
- चारों ओर दीपक जलाए जाते हैं और पूजा सामग्री तैयार की जाती है।
3. पूजा सामग्री:
- इस दिन विशेष रूप से मिट्टी से बने चूल्हे का प्रयोग किया जाता है तथा आम के लकड़ी से ठेकुआ, खीर इत्यादि प्रसाद तैयार किए जाते हैं। पूजा में *कद्दी*, *फल*, *ठेकुआ*, *सुथनी*, *पकवान* और *फलाहार* का इस्तेमाल होता है।
- एक थाली में पवित्र जल, गुड़, और दूध मिला हुआ होता है, जिससे सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है।
4. अर्घ्य देना:
- सूर्यास्त के समय, व्रति सूर्योदेव को अर्घ्य देने के लिए जल पात्र (एक खास बांस की सूप, टोकरी या डलिया) में जल भरकर सूर्यास्त के समय खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य (जल अर्पण) देते हैं।
- अर्घ्य देते समय "ॐ सूर्याय नमः" का मंत्र जाप किया जाता है। साथ ही व्रति सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
5. आरती और भजन:
- अर्घ्य देने के बाद सूर्य देवता की आरती की जाती है। साथ ही छठी मैया की भी पूजा की जाती है।
- इस दौरान पारंपरिक छठ पूजा गीत और भजन गाए जाते हैं, जो व्रतियों की भक्ति और आस्था को और अधिक बढ़ा देते हैं।
6. प्रसाद वितरण:
- पूजा के बाद तैयार किए गए पकवान जैसे ठेकुआ, फल, मिठाई, खीर, सुथनी आदि प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं।
- परिवार और समुदाय के अन्य लोग भी प्रसाद ग्रहण करते हैं।
संध्या अर्घ्य का महत्व:
- संतान सुख और स्वास्थ्य: संतान सुख और परिवार के कल्याण की कामना के लिए व्रति संतान और परिवार के स्वास्थ्य की शुभकामनाएं देते हैं।
- धार्मिक आस्था: यह पूजा सूर्य देवता की उपासना से जुड़ी होती है, जिनसे जीवन और स्वास्थ्य में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
-प्रकृति से जुड़ाव: सूर्यदेव प्रकृति के जीवनदाता माने जाते हैं, और संध्या अर्घ्य में जल अर्पित करके व्रति अपने जीवन में प्रकाश, समृद्धि और सुख की कामना करते हैं।
संध्या अर्घ्य छठ पूजा का एक अहम हिस्सा है, जो पूरे उत्सव की आध्यात्मिक गहराई और महत्व को दर्शाता है।
0 Comments:
एक टिप्पणी भेजें