1971 का वर्ष दक्षिण एशिया के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। यह वह समय था जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता हासिल की और इसके साथ ही भारत ने उस संघर्ष में अपनी निर्णायक भूमिका निभाई, जिसने बांग्लादेश की मुक्ति को संभव बनाया। बांग्लादेश विभाजन, जिसे बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के नाम से भी जाना जाता है, में भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम को न केवल समर्थन दिया, बल्कि सक्रिय रूप से भाग लिया।
बांग्लादेश का संघर्ष और पाकिस्तान में असंतोष
बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) और पाकिस्तान (तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान) के बीच वर्षों से असंतोष और राजनीतिक तनाव बना हुआ था। पूर्वी पाकिस्तान के लोग, जो भाषाई, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से पश्चिमी पाकिस्तान से पूरी तरह अलग थे, ने लंबे समय से पाकिस्तान की पश्चिमी हिस्से के साथ असमान और भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध किया।
1970 में पाकिस्तान के आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान की अवामी लीग ने भारी बहुमत प्राप्त किया था, लेकिन पाकिस्तान की पश्चिमी सरकार ने चुनाव परिणामों को नकारते हुए, बांग्लादेशी नेताओं को सत्ता सौंपने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, बांग्लादेशी नागरिकों का गुस्सा और असंतोष चरम पर पहुँच गया। अंततः, 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बर्बर कार्रवाई की, जिसे "ऑपरेशन सर्चलाइट" कहा गया। इस सैन्य कार्रवाई में लाखों नागरिक मारे गए और भारी संख्या में लोग पलायन करने के लिए मजबूर हुए।
भारत का रुख और समर्थन
भारत में बांग्लादेश के संघर्ष को लेकर गहरी चिंता और सहानुभूति थी, क्योंकि लाखों शरणार्थी भारत में आकर बस गए थे। पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए जा रहे दमन के खिलाफ भारत की सरकार ने लगातार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाई। भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के लोगों के संघर्ष के प्रति अपनी सक्रिय सहानुभूति व्यक्त की और बांग्लादेशी नेता शेख मुजीबुर रहमान और उनकी अवामी लीग को समर्थन दिया।
1971 के अंत तक, भारत के पास बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन देने के लिए एक मजबूत नीति बन चुकी थी। भारत ने न केवल राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर बांग्लादेश का समर्थन किया, बल्कि भारतीय सेना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में सैन्य सहायता भी प्रदान की।
भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश की स्वतंत्रता
भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया, जो 3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमले के बाद औपचारिक रूप से युद्ध में बदल गया। भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ पश्चिमी मोर्चे पर युद्ध लड़ा, जबकि भारतीय सैनिकों ने बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना के खिलाफ प्रमुख लड़ाई लड़ी।
भारतीय सेना ने बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम सेनानियों (जो "मुजीब बहिनी" के नाम से जाने जाते थे) के साथ मिलकर बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना के खिलाफ निर्णायक हमले किए। भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान की वायुसेना और बांग्लादेश के विभिन्न सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जबकि भारतीय सेना ने बांग्लादेश के शहरों और कस्बों में पाकिस्तानियों से लड़ाई लड़ी। 16 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया, जिसके साथ बांग्लादेश की स्वतंत्रता की प्रक्रिया पूरी हुई। यह दिन अब बांग्लादेश में "विजय दिवस" के रूप में मनाया जाता है।
भारत का सैन्य योगदान
भारत की सेना ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक भूमिका निभाई। भारतीय सेना ने तीन प्रमुख मोर्चों पर युद्ध लड़ा:
1. पूर्वी मोर्चा: भारतीय सेना ने बांग्लादेश में पाकिस्तान सेना के खिलाफ प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं। भारतीय सशस्त्र बलों ने बांग्लादेश के प्रमुख शहरों, जैसे ढाका, चटगांव, खुलना और कुस्तिया पर कब्जा किया और पाकिस्तान की सेना को विभाजित कर दिया।
2. पश्चिमी मोर्चा: पाकिस्तान ने भारत पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन भारतीय सेना ने उसे बुरी तरह परास्त कर दिया और पाकिस्तान के पश्चिमी मोर्चे पर भारतीय सेनाएँ पाकिस्तान के भीतर गहरी तक घुस गईं।
3. वायुसेना और नौसेना का योगदान: भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के हवाई ठिकानों पर हमला किया, जबकि भारतीय नौसेना ने पाकिस्तानी नौसेना को बाधित किया और बांग्लादेश के तट पर पाकिस्तान के युद्धपोतों को हराया।
भारत की कूटनीतिक भूमिका
इंडिया ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्रदान किया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बांग्लादेश के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई की कड़ी निंदा की और भारत के पक्ष को प्रमुखता से रखा। भारत ने बांग्लादेश के संघर्ष को एक मानवाधिकार मुद्दा माना और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया।
16 दिसम्बर 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष का परिणाम नहीं था, बल्कि यह भारत के युद्ध नीतियों, कूटनीतिक कदमों और सैन्य साहस का परिणाम था। भारत ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किया और उसकी सहायता से बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्ति मिली। भारतीय सेना के साहसिक अभियानों और भारतीय सरकार की कूटनीतिक पहल के कारण बांग्लादेश को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त हुई, और आज यह दिन बांग्लादेश के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय है। भारत के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता और यह भारतीय सेना और जनता की एकता और शक्ति का प्रतीक बना रहेगा।